यूरोप में कुछ लोग जंगलों में जा कर मशरूम जमा करने का शौक रखते हैं। ये लोग बताते हैं कि पूर्णिमा की रात के बाद अगले दिन उन्हें बढ़िया क्वॉलिटी के मशरूम मिलते हैं। इन मशरूमों में कीड़े लगभग नहीं के बराबर होते हैं। मशरूम जमा करने वालों के मुताबिक पूर्णिमा की रात अन्य रातों के मुकाबले ठंडी होती है। और यह बात सही है। लेकिन रात चंद्रमा की वजह से ठंडी नहीं रहती। इसकी वजह है बादलों का ना होना। बादल छाए होने की वजह से दिन में पड़ने वाली गर्मी पृथ्वी पर ही रह जाती है। जब आसमान साफ होता है, तो गर्मी आसानी से अंतरिक्ष में चली जाती है और धरती ठंडी हो जाती है। 

लेकिन चंद्रमा मौसम को प्रभावित करता है? चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल से ही समुद्र में ज्वार उठता है। ज्वार भाटे से पानी में बड़ी हचलच होती है जिससे हीट बफर बनता है और मौसम प्रभावित होता है। माना जाता है कि अगर ज्वार ना उठें तो पृथ्वी तीन गुना तेजी से घूमेगी। इसके गंभीर परिणाम होंगे। मसलन वातावरण में टरब्यूलेंस बढ़ेगा। इससे तूफान बढ़ेंगे जिनकी रफ्तार 500 किलोमीटर प्रति घंटा हो सकती है जिससे भारी तबाही होगी। गर्मियों में तापमान 60 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। वहीं सर्दियों में पारा मायनस 50 डिग्री तक गिर सकता है। चंद्रमा सिर्फ पृथ्वी के घूमने के क्रम को ही नहीं तोड़ता, बल्कि यह उसकी कक्षा में अक्षों को भी स्थिरता देता है। साथ ही चंद्रमा हमारे नीले गृह पर मौसम को स्थिर भी बनाता है। इसीलिए भूमध्यरेखा वाले इलाकों में पूरे साल एक जैसा मौसम रहता है। खूब सूरज चमकता है। पूरे साल यहां गर्मी रहती है और रोज बारिश होती है। बहुत से जीवों के लिए यह इलाका जन्नत जैसा है। वहीं पृथ्वी के ध्रुवों पर सर्दियों के महीनों में रातें घुप अंधेरी होती हैं और तापमान इतना कम कि इंसानों के लिए रहना मुश्किल हो जाए। चंद्रमा के बिना पृथ्वी लड़खड़ाने लगती। इससे ना सिर्फ दुनिया के मौसम पर, बल्कि जलवायु पर भी दीर्घ कालीन प्रभाव पड़ते। इससे ना सिर्फ पेड़ पौधे, बल्कि इंसानों की जिंदगियों को भी खतरा होता। इसलिए शुक्र मनाइए कि हमारी पृथ्वी के पास चंद्रमा है।