जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा भारत के दौरे पर हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उनकी द्विपक्षीय एवं क्षेत्रीय समस्याओं के बारे में विस्तार से चर्चा हुई है। दोनों देशों के बीच कई समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं जिनमें जटिल तकनीक, डिजिटल, लॉजिस्टिक, स्टील तथा एमएसएमई के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाना शामिल है। अगले पांच वर्षों में जापान भारत में पांच ट्रिलियन येन का निवेश करेगा। रक्षा, व्यापार, निवेश एवं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी दोनों देश कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ेंगे। एक ही समय में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की रूस यात्रा तथा जापान के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा पर दुनिया की नजर लगी हुई है। रूस और चीन से जापान की दुश्मनी जगजाहिर है।
चीन की आक्रामकता से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ-साथ जापान भी परेशान है। ऐसी स्थिति में जापान को हर हालत में भारत से सहयोग चाहिए। जहां चीन जापान के सेनकाकु द्वीप पर अपना दावा करता है वहीं भारत का चीन के साथ सीमा विवाद है। गलवान और तवांग की घटना के बाद भारत और चीन की सेना एक-दूसरे के खिलाफ डटकर खड़ी है। यही कारण है कि दोनों देश चीन के खिलाफ एकजुट होकर काम करने पर सहमत हैं। जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. शिंजो आबे ने मुक्त एवं स्वतंत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र का जो विजन रखा था, उस पर दोनों देश मिलकर काम करने को तैयार हैं। चीन की विस्तारवादी नीति एवं आक्रामकता के खिलाफ भारत, जापान, आस्ट्रेलिया एवं अमरीका ने मिलकर जो क्वाड बनाया है उस पर भी चर्चा होगी। इस वर्ष जापान की अध्यक्षता में जी-7 देशों की बैठक होनी है, जिसके लिए किशिदा ने प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रित किया है।
भारत में जी-20 की बैठक भी होनी है तथा क्वाड की बैठक भी होनी है। इन बैठकों के बारे में भी दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच चर्चा हुई है। भारत और जापान के बीच विशेष संबंध है। दोनों देशों के बीच वार्षिक शिखर वार्ता भी होती है। संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में जापानी प्रधानमंत्री ने भारतीय लोकतंत्र की प्रशंसा करते हुए कहा है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश भारत की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। हिंद महासागर क्षेत्र में भी चीन का घुसपैठ बढ़ता जा रहा है। भारत और जापान ड्रैगन की हरकत का मुकाबला करने के लिए संयुक्त पेट्रोलिंग एवं सैन्य अभ्यास को बढ़ावा देंगे। नौसेना के क्षेत्र में जापान को काफी महारत हासिल है। अपनी नौसेना को मजबूत करने के लिए भारत जापान की सहायता ले सकता है। द्विपक्षीय बैठक के दौरान इस विषय में विस्तार से चर्चा हुई है। 2022 में जापान ने भारत-आस्ट्रेलिया और अमरीका के साथ मिलकर मालाबार सैन्य अभ्यास किया था। दुनिया में शांति एवं स्थिरता के लिए भारत और जापान के बीच मजबूत संबंध होना जरूरी है। आर्थिक क्षेत्र में जापान भारत से काफी आगे है।
जापानी कंपनियां भारत में निवेश कर सकती हैं जिसका लाभ भारत को मिल सकता है। वर्ष 2022 में दोनों देशों के प्रधानमंत्री तीन बार मिल चुके हैं। वर्ष 2023 में भी दोनों की तीन बार मुलाकात होनी तय है। रणनीतिक दृष्टिकोण से भी भारत और जापान की दोस्ती दोनों के लिए फायदेमंद है। चीन की बढ़ती दादागिरी को देखते हुए जापान ने भी अपने रक्षा बजट में भारी बढ़ोतरी की है। इसका लाभ भारत को निश्चित रूप से मिलेगा। जापानी प्रधानमंत्री किशिदा की वर्तमान भारत यात्रा दोनों देशों के बीच सहयोग के नए अवसर पैदा करेंगे। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. शिंजो ने इस संबंध में जो आधार बनाया था उसका परिणाम अब सामने आने लगा है।