अब तक ब्रिटिश राज के बनवाए भवन से संसद का कामकाज चल रहा था। भारत की राजधानी से ब्रिटिश राज की इमारतों में आमूल-चूल परिवर्तन के जरिए दिल्ली को नया रूप रंग देने की कोशिश में जुटी सरकार ने सेंट्रल विस्टा नाम से जो निर्माण की विशाल परियोजना शुरू की है, नया संसद भवन उसी का हिस्सा है। इसमें भारत की संस्कृृति, परंपरा और प्रतीकों का इस्तेमाल किया गया है। यह 2024 के चुनाव से पहले मौजूदा सरकार के दशक भर के कामों का एक बड़ा प्रतिबिंब भी है, जिसे दिखाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरे कार्यकाल के लिए लोगों का समर्थन मांगेंगे। प्रधानमंत्री के हाथों उद्घाटन को लेकर विपक्ष ने सरकार की आलोचना की है। बावजूद इसके  रविवार सुबह नई संसद भवन के बाहर पारंपरिक सर्वधर्म प्रार्थना हुई। उसके बाद प्रधानमंत्री ने परिसर के भीतर दिया जलाया। इस दौरान कैबिनेट के वरिष्ठ सदस्य मौजूद थे।

प्रधानमंत्री ने इस मौके पर 75 रुपए का एक सिक्का भी जारी किया। प्रधानमंत्री सेंगोल लेकर संसद के भीतर गए।  इस दौरान अलग अलग संप्रदायों के दर्जनों धर्मगुरु भी उनके साथ थे। इसे स्पीकर के आसन के बगल में लगाया गया है। चोल राजाओं के समय का सेंगोल आजादी मिलते समय अंग्रेजों ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था। उद्घाटन के कुछ ही देर बाद उत्साह से भरे नरेंद्र मोदी पार्टी सांसदों के मोदी मोदी नारों के बीच संसद में दाखिल हुए और लगभग 40 मिनट का भाषण दिया।  प्रधानमंत्री ने भारत के संसदीय लोकतंत्र की तारीफ की। प्रधानमंत्री ने पुरानी संसद का संदर्भ देते हुए कहा कि देश ने अपना औपनिवेशिक अतीत पीछे छोड़ दिया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत लोकतंत्र की जननी है।

कई सालों के विदेशी शासन ने हमारा गर्व हमसे चुरा लिया था। आज भारत ने औपनिवेशिक सोच को पीछे छोड़ दिया है। मोदी का यह भी कहना है कि यह सिर्फ एक इमारत नहीं है लोकतंत्र का मंदिर है। यह दुनिया को भारत की प्रतिबद्धता का संदेश है। 20 विपक्षी दलों ने कार्यक्रम का बहिष्कार किया है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद भवन का खुद उद्घाटन करके परंपरा का उल्लंघन किया है। यह काम राष्ट्रपति के हाथों होना चाहिए जो देश की प्रथम नागरिक और सबसे ऊंचे पद पर आसीन हैं।

विपक्ष का कहना है कि बिना विपक्ष के संसद के नए भवन के उद्घाटन का मतलब है कि देश में लोकतंत्र नहीं है। यह कार्यक्रम अधूरा है। मोदी सरकार ने विपक्ष की दलीलों को खारिज किया।  सरकार का कहना है कि प्रोटोकॉल को नहीं तोड़ा गया है और प्रधानमंत्री देश के संवैधानिक प्रमुख का सम्मान करते हैं।  उल्लेखनीय है कि नया संसद परिसर 2.4 अरब रुपए की परियोजना से बने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के केंद्र में है। इसके जरिए एक तरफ जहां औपनिवेशिक दौर की इमारतों को महत्वहीन करने की योजना है, वहीं राजधानी में भारतीय पहचान के साथ आधुनिक इमारतों का निर्माण करना है। नया संसद भवन बनाने पर तकरीबन 12 करोड़ डॉलर खर्च किए गए है। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत संसद के अलावा कई और इमारतें बनाई जा रही हैं जिसमें सरकारी मंत्रालयों और विभागों के साथ ही प्रधानमंत्री का नया आवास भी शामिल है।

  यह तकीबन 3.2 किलोमीटर में फैला है।  इस परियोजना की घोषणा 2019 में हुई थी और दिसंबर 2020 में प्रधानमंत्री मोदी ने इसका शिलान्यास किया।  विपक्षी दल, आर्किटेक्ट और विरासतों के विशेषज्ञ इसे लेकर सवाल उठाते रहे हैं। बहुत से लोगों ने इसे पर्यावरण के लिहाज से भी गैर जिम्मेदाराना माना है जो बेहद खर्चीला होने के साथ ही सांस्कृतिक विरासत के लिए नुकसानदेह है। 2021 में जब इसे शुरू किया गया था तब कम से कम 12 विपक्षी दलों ने इस परियोजना के समय को लेकर भी सवाल उठाए थे। उनका कहना था कि जब देश कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों से संकट में है तब केंद्र सरकार नई इमारतों की योजना बनाने में जुटी है।  एक साल पहले 60 पूर्व नौकरशाहों ने एक खुला पत्र लिख कर कहा था कि नई योजना पुराने संसद भवन के वास्तुकला की अहमियत के साथ इस इलाके की सांस्कृतिक विरासत को खत्म कर देगी।