वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने के लिए विपक्षी दल एकजुट होने लगे हैं। विपक्षी दल अभी तक यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में विपक्ष का चेहरा कौन होगा? हालांकि विपक्ष के कई नेता अपने को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के दौर में हैं, लेकिन स्पष्ट रूप में अभी तक कोई कुछ नहीं कह पा रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी उनको अगले चुनाव में विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री को चेहरा मानती है। विपक्षी पाॢटयों द्वारा उनके नाम पर अभी तक कोई सहमति नहीं बनने के कारण नीतीश कुमार का कहना है कि वे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं हैं। उनका काम भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने का है।
आगामी 23 जून को पटना में विपक्षी नेताओं की बैठक हो रही है, जिसमें मोदी के खिलाफ अपनाई जाने वाली रणनीति पर मुहर लग सकती है। आपसी मतभेद के कारण विपक्षी दल चुनाव से पहले एक प्लेटफॉर्म पर तो आ सकते हैं, किंतु प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित होने की उम्मीद नहीं है। कई विपक्षी नेताओं का मानना है कि चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद के लिए चेहरा घोषित होने से आपस में फूट पड़ सकती है। एनसीपी के सुप्रीमो शरद पवार के बयान से यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है। पटना की बैठक में तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक एवं बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती का पटना की बैठक से दूरी बनाना यह साबित करता है कि विपक्षी खेमें में भी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। जांच एजेंसियों, सांप्रदायिकता, जातिगत आरक्षण सहित कुछ मुद्दों पर विपक्षी पाॢटयां एकजुट तो हैं ङ्क्षकतु अपने राजनीतिक हितों को लेकर सशंकित भी हैं।
ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में, चन्द्रशेखर राव तेलंगाना में, जगन मोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश में, अरङ्क्षवद केजरीवाल पंजाब में अपना दबदबा चाहते हैं, जहां उनकी प्रतिद्वंद्विता मुख्य रूप से कांग्रेस के साथ है। उनको भय है कि गठबंधन से उनके राज्यों में राजनीतिक नुकसान हो सकता है। कर्नाटक में जिस तरह मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण कांग्रेस के पक्ष में शुरू हुआ है उससे क्षेत्रीय दल के नेता भयभीत हैं। कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष का उम्मीदवार बनाना चाहती है, ङ्क्षकतु चन्द्रशेखर राव, ममता बनर्जी, अरङ्क्षवद केजरीवाल एवं शरद पवार जैसे नेताओं को स्वीकार नहीं है। यही कारण है कि विपक्षी दल इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालना चाहते हैं। विपक्षी दल चाहते हैं कि लोकसभा की कुल 543 सीटों में से कम से कम 450 सीटों पर विपक्ष के साझा उम्मीदवार को भाजपा गठबंधन के खिलाफ तैयार किया जाए। इस मुहिम में कितनी सफलता मिलेगी अभी कहना कठिन है। असली झगड़ा तब शुरू होगा जब सीटों का बंटवारा शुरू होगा। बिहार में जीतन राम मांझी की नेतृत्व वाली हम पार्टी ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया।
23 जून की बैठकसे पहले इसे एक बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है। भाजपा भी विपक्ष की पहल पर नजर बनाई हुई है। अभी देश के पन्द्रह राज्यों में से दस राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री हैं, जबकि पांच राज्यों में भाजपा सरकार में शामिल है। दस राज्यों में लगभग 70 प्रतिशत लोकसभा सीटें भाजपा के पास हैं। भाजपा ने भी अपनी पिछली गलतियों से सबक लेते हुए अपना कुनबा बढ़ाने की पहल शुरू कर दी है। छोटे-छोटे दलों के साथ भाजपा की बातचीत शुरू हो चुकी है। तमिलनाडु में एआईडीएमके, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में तेलगुदेशम पार्टी, पंजाब में शिरोमणि अकाली दल, उत्तर प्रदेश में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के साथ बातचीत चल रही है।
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और जदयू से मुकाबले के लिए चिराग पासवान, उपेन्द्र कुशवाहा, जीतन राम माझी, मुकेश साहनी की पार्टी के साथ भी गठबंधन पर विचार-विमर्श चल रहा है। अगर बिहार में महागठन के खिलाफ भाजपा का मजबूत गठबंधन बन गया तो मुकाबला रोमांचक हो जाएगा। भाजपा की नजर अभी पटना मीङ्क्षटग की ओर लगी हुई है। भाजपा ने अभी से ही लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों के लिए कमर कस ली है।