गर्मियों की तपिश से जूझने के बाद पूरे भारत में मानसून का इंतजार रहता है। मध्य जून से सितंबर तक मानसून भारत को उसकी जरूरत का पूरा पानी दे देता है। मानसून बढिय़ा रहे तो ज्यादातर पानी में बाढ़ के रूप में बह जाता है और सावन की बारिश कम हो तो फसलों पर इसका असर दिखता है। जलवायु परिवर्तन के दौर में मानसून और उस पर निर्भर जल संसाधन भी प्रभावित हुए हैं। दूसरी ओर नगरीय क्षेत्र में धड़ल्ले से हो रही पेयजल की बर्बादी और परंपरागत स्रोतों पर कम हो रही लोगों की निर्भरता के चलते भूमिगत जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है।
इससे आने वाले समय में शहरी इलाके में पानी की गंभीर समस्या पैदा हो सकती है। यहां बताना जरूरी है कि वर्ष 2006 में यानी 17 वर्ष पहले जमीन के अंदर पीने लायक पानी 80 से लेकर 100 फुट की गहराई तक मिल जाता था, लेकिन अब स्थिति काफी गंभीर हो चली है।
अगर आपको सिंचाई या अन्य कार्यों के लिए पानी इस्तेमाल करना है तो जमीन की खुदाई 180 फुट से ज्यादा करनी पड़ती है। अगर पीने लायक पानी प्राप्त करना है तो 250 फुट तक जमीन को खोदना पड़ रहा है। इस हिसाब से देखा जाए तो प्रतिवर्ष लगभग 8 फुट नीचे जल स्तर जा रहा है। जिससे आने वाले समय में पानी की बड़ी समस्या पैदा हो सकती है। बावजूद इसके पेयजल की धड़ल्ले से बर्बादी की जा रही है। भारत के नीति आयोग के अनुसार भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी है, जबकि देश के पास सिर्फ चार प्रतिशत जल संसाधन हैं।
नीति आयोग नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया की 2018 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अपने इतिहास के सबसे बुरे जल संकट से पीडि़त है और लाखों लोगों का जीवन और आजीविका खतरे में हैं। फिलहाल 60 करोड़ भारतीय गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं और पानी की कमी और उस तक पहुंचने में आने वाली मुश्किल के कारण हर साल लगभग दो लाख लोगों की मौत हो जाती है।
2030 तक देश में पानी की मांग, उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने का अनुमान है, जिससे लाखों लोगों के लिए पानी की गंभीर कमी और देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब 6 प्रतिशत की हानि होने का अनुमान है। पांचवीं लघु सिंचाई गणना (2013-14) के अनुसार भारत में लघु सिंचाई गतिविधियों के लिए कुल 2,41,715 तालाबों का उपयोग किया जाता है। एक दशक पहले 2006 में प्रकाशित रिपोर्ट में देश में कुल 1,03,878 ऐसे तालाबों की सूचना दी गई थी।
केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार भारत में कुल 7,090 जल निकाय अतिक्रमण के कारण खत्म होने का खतरा झेल रहे हैं हालांकि, ग्रामीण भारत में कुल तालाबों की संख्या पर कोई ठोस डाटा नहीं है। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार 1.3 अरब से अधिक आबादी वाला देश जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण,मानवजनित गतिविधियों, भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों और लोगों के व्यवहार के कारण अपने तालाबों को खो रहा है। भूजल की कमी प्रमुख कारणों में से एक है और अतिदोहन ने स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। पंजाब जैसे कृृषि प्रधान राज्य, सिंचाई के लिए ट्यूबवेल के पानी का खूब इस्तेमाल करते हैं,जिससे जल स्तर गिर जाता है।
तालाब और झील या अन्य जल निकाय घरेलू और कृृषि उद्देश्यों के लिए जल भंडारण और पानी तक पहुंच उपलब्ध कराने में मदद करते हैं। बांधों से बनी झीलें बिजली पैदा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पॉन्डमैन ऑफ इंडिया के नाम से लोकप्रिय रामवीर तंवर ने सात साल पहले पूरे भारत में जल निकायों को फिर से भरने, साफ करने और पुनर्जीवित करने की पहल शुरू की थी। उन्होंने अब तक 42 से अधिक तालाबों को पुनर्जीवित किया है और उनके प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र ने भी सराहा। वह ताइवान में शाइनिंग वल्र्ड प्रोटेक्शन अवार्ड, जल शक्ति मंत्रालय की ओर से वॉटर हीरो अवार्ड, इंडिया आइकॉनिक अवार्ड और संयुक्त राष्ट्र की ओर से स्थापित रेक्स करमवीर चक्र अवार्ड भी पा चुके हैं। समस्या की भयावहता को देखते हुए पूरे देश को तंवर के तरीके को अपनाने की जरूरत है।