भारतीय संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति देश और राज्यपाल राज्य के संविधानिक प्रमुख होते हैं, जबकि शासन का वास्तविक बागडोर क्रमश: प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के हाथों में होती है। राष्ट्रपति और राज्यपाल सत्ता के संचालन का कार्य क्रमश: प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की सलाह पर करते हैं, परंतु इन दिनों राज्यों से राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों के बीच तनातनी की खबरें अकसर आ रही हैं, जो हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शुभ नहीं है। यह सही है कि राज्यपाल की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है, परंतु केंद्र सरकार को चलाने वाले लोगों की पार्टी के हित को संरक्षित करना राज्यपाल का काम नहीं है। यदि कोई ऐसा कर रहा है तो वह भारतीय संविधान की शपथ लेकर उसके खिलाफ कार्य कर रहा है और अपनी शपथ को तोड़ रहा है। दुर्भाग्य है कि इतने बड़े संविधानिक पद पर बैठे लोग अपने संविधानिक दायित्व को कम निभा रहे हैं, इसके बदले अपने वैचारिक दायित्व का ज्यादा पालन कर रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में केंद्र और राज्य के संबंध में तनातनी देखी जा रही है और राज्यपाल जैसा सम्मानीय पद भी अपनी गरिमा खो रहा है।
उल्लेखनीय है कि राज्यों में किसी मंत्री को बर्खास्त करने का फैसला मुख्यमंत्री का होता है और मुख्यमंत्री बर्खास्तगी की अनुशंसा राज्यपाल को भेजते हैं, परंतु तमिलनाडु के राज्यपाल ने मुख्यमंत्री और मंत्री परिषद से सलाह लिए बिना मंत्री को बर्खास्त कर दिया। उल्लेखनीय है कि बालाजी को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 14 जून को मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों में गिरफ्तार किया था। आरोप 2014 के थे जब वो एआईएडीएमके पार्टी में और उस समय की सरकार में यातायात मंत्री थे। राज्यपाल चाह रहे थे कि मुख्यमंत्री स्टालिन बालाजी की गिरफ्तारी के बाद उन्हें मंत्री पद से हटा दें लेकिन स्टालिन ने अभी तक यह फैसला नहीं लिया था। इसी बीच राज्यपाल ने स्टालिन पर बालाजी के प्रति पक्षपात का आरोप लगाते हुए बालाजी को बर्खास्त करने के आदेश दे दिए। मामले ने और ज्यादा नाटकीय मोड़ तब लिया जब राज्यपाल ने पांच घंटों के अंदर ही स्टालिन को पत्र लिखकर बालाजी की बर्खास्तगी रोक देने का आदेश दिया।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक उन्होंने स्टालिन को लिखा कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उन्हें कहा है कि इस मामले में अटॉर्नी जनरल की सलाह भी ले लेनी चाहिए। उनकी सलाह मिलने तक बर्खास्तगी के आदेश को रोक दिया जाए। मुख्यमंत्री स्टालिन राज्यपाल के कदम से नाराज थे और उन्होंने पत्रकारों से कहा था कि वो बर्खास्तगी के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। राज्यपाल की ताजी चि_ी के बाद स्टालिन ने अभी तक अपने अगले कदम के बारे में घोषणा नहीं की है। संविधान की धारा 164 (1) के मुताबिक राज्यपाल मुख्यमंत्री को नियुक्त करते हैं और फिर मुख्यमंत्री की सलाह पर दूसरे मंत्रियों को नियुक्त करते हैं। सभी मंत्री तब तक अपने पदों पर बने रह सकते हैं जब तक राज्यपाल चाहें।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में यह स्पष्ट कर चुका है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को हमेशा मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करना होता है। जब मुख्यमंत्री स्टालिन और राज्यपाल रवि आपस में भिड़ गए हैं। इससे पहले रवि ने राज्य की विधान सभा द्वारा पारित कई बिलों पर अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद डीएमके ने उनके खिलाफ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को चि_ी लिखकर शिकायत की थी। इस बार विपक्षी पार्टियां रवि को बर्खास्त करने की मांग कर रही हैं। विपक्षी पार्टियों के मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों के बीच टकराव पहले भी होता था, लेकिन बीते कुछ सालों में यह काफी बढ़ गया है। दिल्ली , पंजाब, पश्चिम बंगाल, केरल जैसे राज्यों में अकसर ऐसे टकराव देखने को मिल रहे हैं। केरल में तो स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि राज्य सरकार राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रही है।
दूसरी ओर ऐसा लगता है कि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को इस बात की जानकारी नहीं है कि राज्य की जनता ने उन्हें कभी वोट देकर सत्ता नहीं सौंपी। वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार के साथ अपने महीनों लंबे टकराव के दौरान खान ने गवर्नर विशेषाधिकारों के दायरे के बारे में कुछ आश्चर्यजनक दावे किए हैं। एक अवसर पर उन्होंने यह सिद्धांत दिया कि चूंकि मंत्री राज्यपाल की इच्छा पर पद पर रहते हैं, राज्य मंत्रिमंडल के जिन सदस्यों ने उनकी नाराजगी अर्जित की है, उन्हें पद छोड़ देना चाहिए या ऐसा करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। दूसरी ओर समझ से परे है कि आजकल के राज्यपाल संविधान के प्रति कितने समॢपत हैं।