राज्य के पांच आदिवासी आतंकी संगठनों के 1182 कैडरों ने गत 6 जुलाई को मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा के सामने आत्म समर्पण किया। इन लोगों ने 304 अत्याधुनिक हथियारों और 1460 राउंड गोला बारूद भी जमा करवाए। आत्मसमर्पण करने वाले आदिवासी आतंकी संगठनों के नाम क्रमशः ऑल आदिवासी लिबरेशन आर्मी, बिरसा कमांडो फोर्स, संथाल टाइगर फोर्स, आदिवासी कोबरा मिलिटेंट असम एवं आदिवासी पीपुल्स आर्मी हैं। आज 13 जुलाई को भी आदिवासी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के 37 सदस्यों ने आत्म समर्पण किया है। इन सदस्यों में म्यामां प्रशिक्षित कट्टर आतंकी भी शामिल हैं। मालूम हो कि 4 अक्तूबर 2016 को इन आतंकी संगठनों ने संघर्ष विराम पर हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद सरकार तथा इनके बीच कई दौर की बातचीत हुई थी। 15 सितंबर 2022 को असम सरकार, केंद्र सरकार और आदिवासी संगठनों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। इस हस्ताक्षर के बाद 22 मई को असम सरकार ने 16 सदस्यीय आदिवासी कल्याण एवं विकास परिषद का गठन किया था। हथियार डालने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. शर्मा की उपस्थिति में असीम हासदा ने अध्यक्ष के रूप में तथा सुभाष तिर्की ने उपाध्यक्ष के रूप में शपथ ली।
दुर्गा हासदा को सीईएम, पेटेर डांग को डिप्टी सीईएम तथा दीपेन नायक, अमृत बेक, मंडल हासदा, प्रसियस हेमब्रम, तिरकु टुडू, सुसेन टिग्गा एवं सिनेस हेमब्रम, मोहन किसकु, बिलियम टुडू, लखन सोरेन, जागीन सोरेन और चुनका हासदा को कार्यकारी सदस्य के रूप में शपथ दिलाई गई है। राज्य सरकार ने हथियार डालने वाले कैडरों के बैंक खातों में 15 अगस्त से पहले 4-4 लाख रुपए फिक्स्ड डिपॉजिट करवाएगी ताकि वे बैंक से स्वरोजगार के लिए 3 लाख रुपए तक ऋण ले सकें। इसके अलावा इन कैडरों को तीन साल तक के लिए प्रति माह छह हजार रुपए का भुगतान राज्य सरकार करेगी, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। मालूम हो कि हथियार डालने वाले सभी आतंकी वर्ष 2016 से ही विशेष कैंप में रह रहे थे। असम का चाय बागान क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ है। बागान क्षेत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा सहित विभिन्न बुनियादी सुविधाओं की कमी है। असम के चाय बागान तथा दूसरे क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी वृहत्तर असमिया समाज के अंग हैं।
ऐसी स्थिति में उनके विकास के लिए ढांचागत सुविधा विकसित करने के साथ-साथ शिक्षा एवं दूसरे क्षेत्रों में काम करने की जरूरत है। हिमंत विश्व शर्मा सरकार चाय बागान क्षेत्रों में सड़क बनाने पर जोर दे रही है। साथ में बागान क्षेत्र में मॉडल स्कूलों को खोला जा रहा है ताकि बागान क्षेत्र में रहने वाले बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके। असम में रहने वाले आदिवासी समाज के लोगों की संस्कृृति, भाषा एवं पहचान बचाने की जरूरत है। केंद्र और राज्य सरकार उनके विकास के लिए अनेक परियोजनाएं शुरू की है। चाय बागान में रहने वाले लोग विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के वोट बैंक रहे हैं। पहले ये लोग कांग्रेस के वोट बैंक थे, किंतु मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इनका झुकाव भाजपा की तरफ हो गया। सरकार चाय बागान क्षेत्र के लोगों के विकास के लिए स्कूल-कॉलेज के साथ-साथ नॄसग कॉलेज खोलने सहित दूसरी सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित कर रही है। चायकर्मियों के बच्चों को रोजगार देने के लिए स्कील डेवलपमेंट के लिए केंद्र बनाए जा रहे हैं। अगर चाय बागान क्षेत्र में विकास की गति तेज होगी तो निश्चित रूप से गुमराह युवक राष्ट्र की मुख्यधारा में लौटेंगे। पांच आदिवासी आतंकी संगठनों का मुख्यधारा में लौटना राज्य के लिए सकारात्मक संकेत हैं। चाय जनजातियों की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए राजनीतिक पहल के साथ-साथ प्रशासनिक स्तर पर भी कदम उठाने की जरूरत है। अगर सरकार इस दिशा में सही पहल करती है तो इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।