इन दिनों देश के कई इलाके बाढ़ की विभीषिका से प्रभावित हैं। ज्यादा बारिश होने के कारण नदियों में भूकटाव तेज हो गया है तो पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाएं तेजी से घट रही हैं और उनके कारण कइयों की मौत हो चुकी है। असमवासियों के लिए बाढ़ की विभीषिका का सामना करना कोई नई बात नहीं है। असम में बाढ़ का पहला चरण समाप्त हो चुका है और आने वाले दिनों में एक बार फिर इसे बाढ़ की त्रासदी झेलनी पड़ेगी। दूसरी और हिमाचल प्रदेश में बाढ़ के कारण एक पुल ढह गया,कई घर मलबे के ढेर में तब्दील हो गए और 22 लोगों की मौत हो गई। बीते सप्ताह के अंत में मानसून की अत्यधिक भारी शुरुआत के कारण हिमाचल के कई जिलों में एक दिन में ही एक महीने के बराबर बारिश हुई। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में भारी बारिश के बाद हालात बहुत खराब हैं। गंगा, रावी, चिनाब, ब्यास, सतलुज समेत कई नदियां उफान पर हैं। इनके तेज बहाव में कई जगहों पर मकान, गाड़ियां और पुल बह गए। दिल्ली में यमुना नदी का जल स्तर ऐतिहासिक रूप से काफी ज्यादा बढ़ गया है और यह खतरे के निशान 205 मीटर को पार कर गया।
13 जुलाई, 2023 को यमुना में जल स्तर 208 मीटर को पार कर गया, इससे पहले 1978 में जल स्तर 207.49 मीटर तक पहुंचा था। दिल्ली के निचले इलाके जलमग्न हो गए। लोग अपने घर-बार छोड़कर सड़कों पर रात गुजारने को मजबूर है। दूसरी ओर असम में तो बाढ़ आना हरेक साल की नियति बन गई है। असम घाटी एक आकर की घाटी है जिसकी औसतन चौढ़ाई 80 से 90 किमी. है, वहीं इस घाटी के बीच से प्रवाहित होने वाली नदियों की चौड़ाई 8 से 10 किमी. है। तिब्बत, भूटान, अरुणाचल और सिक्किम आदि क्षेत्रों से भूमि ढलान असम की ओर है। इसलिए इन सभी क्षेत्रों से पानी की निकासी का मार्ग केवल असम की ओर होता है, जो असम में आने वाली बाढ़ का एक बड़ा कारण है। असम हिमालय, हिमालय का अपेक्षाकृत नवीन भाग है, इसलिए अभी इसकी भूमि कम कठोर है। जब तिब्बत, भूटान, अरुणाचल और सिक्किम जैसे उच्च क्षेत्रों से पानी तीव्रता से असम की ओर प्रवाहित होता है तो भूमि के कम कठोर होने के कारण भूमि क्षरण तेजी से होता है। साथ ही पानी के प्रवाह की तीव्रता बाढ़ की प्रभाविता को और गंभीर बना देती है। असम की सबसे बड़ी नदी ब्रह्मपुत्र है, जिसका अपवाह क्षेत्र चीन, भारत, बांग्लादेश और भूटान में लगभग 580,000 वर्ग किमी का है।
ब्रह्मपुत्र विश्व की शीर्ष पांच अवसाद प्रवाहित करने वाली नदियों में से एक है। इन अवसादों के जमाव से पानी के प्रवाह में रूकावट आती है। ब्रह्मपुत्र में अवसादों की बड़ी मात्रा तिब्बत से प्रवाहित होकर आती है, तिब्बत के क्षेत्र की शुष्क, चट्टानी और वृक्षरहित परिस्थितियां अवसादों की अत्यधिक मात्रा हेतु जिम्मेदार है। नदियों का प्रवाह भूकंप प्रभावित क्षेत्रों से होने के कारण नदियों के मार्ग में परिवर्तन हो जाता है। साथ ही नदियों का स्वरूप भी प्रभावित होता है। वर्ष 1950 में आए एक विनाशकारी भूकंप की वजह से डिब्रूगढ़ में ब्रह्मपुत्र नदी के जल स्तर में 2 मीटर की बढ़ोत्तरी देखी गई थी। यहां नदी के किनारे के वृक्षों और झाड़ियों की कटाई से भूमि क्षरण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। साथ ही ये झाड़ियां जल के प्रवाह को रोकने और रिहायशी इलाकों में प्रवेश को भी बाधित करती है। नदियों के किनारे लगातार बढ़ती मानव बस्तियां बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं।
बढ़ती बस्तियों से आर्द्रभूमियों को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा है। आर्द्रभूमि अतिरिक्त पानी की मात्रा को अवशोषित कर लेती थी, लेकिन इनकी कम होती संख्या ने बाढ़ की प्रभाविता को और बढ़ा दिया है। स्वतंत्रता के बाद असम में बाढ़ की समस्या के समाधान के लिए अस्थायी बांध बनाए गए, जिनकी कमजोर संरचना के कारण स्थिति और अधिक दयनीय हो गई। निष्कर्षतः असम की बाढ़ एक दीर्घकालीक और बहुत ही जटिल समस्या रही है। इस संबंध में सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयास पर्याप्त साबित नहीं हो पा रहे हैं। इसलिए विशेष रूप से असम में आने वाली बाढ़ के कारणों की समीक्षा कराई जानी चाहिए। पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री नीतिन गडकरी ने बाढ़ को रोकने के लिए ब्रह्मपुत्र के खनन की बात कही थी, जो दिवास्वप्न के सिवाय और कुछ नहीं है। फिर भी,बाढ़ के लिए नई योजनाओं में लोगों की सहभागिता,पर्याप्त वित्तीयन और तकनीकों के कुशल प्रयोग पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।