बेंगलुरू में हुई 26 विपक्षी दलों की बैठक के जवाब में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) ने भी आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस ली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में दिल्ली में एनडीए के 38 दलों की बैठक हुई, जिसमें सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर मोदी के नेतृत्व में अगला लोकसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया गया। भारतीय लोकतंत्र की दृष्टि से 18 जुलाई का दिन काफी अहम रहा। जहां विपक्षी दलों ने अपने नए गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लुसिव अलायंस (इंडिया) का गठन कर भाजपा को चुनौती देने का फैसला किया है। इंडिया के घटक दलों का कहना है कि वे लोग भारत में लोकतंत्र बचाने के लिए इकट्ठे हुए हैं, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि परिवारवादी पार्टियां अपने परिवार तथा भ्रष्टाचार के आरोप से बचने के लिए इकट्ठा हुई हैं। इंडिया के गठन के बाद भी आगे का रास्ता इतना आसान नहीं है। माकपा के राष्ट्रीय महासचिव सीताराम येचुरी ने बैठक के बाद यह घोषणा की है कि पश्चिम बंगाल में उनकी पार्टी का ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी टीएमसी के साथ अगले चुनाव में कोई तालमेल नहीं होगा। इसी तरह केरल में भी माकपा और कांग्रेस के बीच दुश्मनी जगजाहिर है।

दिलचस्प बात यह है कि टीम इंडिया में जो 26 दल शामिल हैं उनमें से 10 दल ऐसे हैं जिनका संसद में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। इन पार्टियों में आरएसपी, पीडीपी, सीपीआई (एमएल), केएमडीके, आरएलडी, अपना दल (कमेरावादी), एआईएफबी, वीसीके, केरल कांग्रेस तथा एमएमके हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय जनता दल का भी अभी लोकसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। इस तरह एनडीए में शामिल 38 दलों में से 24 दल ऐसे हैं, जिनका संसद में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। दो राजनीतिक दल का केवल राज्य सभा में ही प्रतिनिधित्व है। एनडीए के तहत लोकसभा में कुल 332 सांसद हैं, जिसमें से 301 सांसद केवल भाजपा के हैं। उनके बाद शिवसेना (शिंदे गुट) के 13, लोक जनशक्ति पार्टी के 6 सांसद हैं। बाकी दलों में सात ऐसे दल हैं, जिनके पास केवल एक-एक सांसद हैं, जबकि दो दलों के पास केवल दो सांसद हैं। ऐसा लगता है कि टीम इंडिया तथा एनडीए के बीच अपना कूनबा बढ़ाने के लिए होड़ मची हुई है। छोटी-छोटी राजनीतिक पार्टियां जिनका जनाधार सीमित इलाके में है, वे चुनाव तो जीत नहीं सकती, किंतु दूसरे दलों को चुनाव जीतने में जरूर सहायक हो सकती हैं। वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव पिछले चुनाव के मुकाबले अलग तरह से होने जा रहा है। भाजपा भी विपक्ष की चुनौती को देखते हुए विभिन्न जातियों में अपना जनाधार बढ़ाने में लगी हुई है।

खासकर दलित, महादलित, पिछड़े एवं सवर्णां में अपना आधार लगातार बढ़ाने के लिए भाजपा प्रयासरत है। देश के बड़े राज्य जहां सबसे ज्यादा लोकसभा से सांसद जीतकर आते हैं वहां सबकी नजर लगी हुई है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं, वहां कांग्रेस, समाजवादी पार्टी एवं राष्ट्रीय लेाकदल मिलकर चुनाव लड़ने जा रही है। उसका मुकाबला करने के लिए भाजपा ने सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल (अनुप्रिया पटेल) के साथ चुनावी गठबंधन कर चुकी है। समाजवादी पार्टी के कुछ नेता भी पाला बदलने की तैयारी में हैं। उत्तर प्रदेश से दिल्ली का रास्ता निकलता है। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने अगला चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया है। मायावती का विपक्ष से अलग रहना भाजपा के लिए मददगार साबित हो सकता है। इसी तरह अगर पश्चिम बंगाल में माकपा गठबंधन से बाहर हो जाती है तो वहां की राजनीतिक स्थिति भी बदल सकती है। बिहार में महागठबंधन तथा भाजपा के बीच लगातार जोर आजमाइश चल रही है। जहां राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यू तथा कांग्रेस मिलकर भाजपा को पटखनी देने की तैयारी में है, वहीं भाजपा उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान, पशुपति पारस, जीतनराम माझी की पार्टी को साथ लेकर अपन जनाधार बढ़ाने में पूरा जोर लगा रही है। कुल मिलकार पक्ष और विपक्ष दोनों ही एक-दूसरे को मात देने के लिए रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं।