इन दिनों पूरे देश पर प्रकृृति की मार है। देश के कई इलाकों में बाढ़ ने तबाही मचा रखी है तो कई इलाकों में मानसून दगा देकर चला गया है। परिणामत: एक ओर लोग बाढ़ से तबाह हैं तो दूसरी ओर बारिश के अभाव में खेती-बारी को सुखाड़ का सामना करना पड़ रहा है, सबसे ज्यादा प्रभावित धान की खेती हो रही है, जिसको रोपने के बाद खेतों में पानी का अभाव है और किसानों को बारिश का इंतजार है, परंतु बारिश नहीं हो रही है और किसान को अभी से ही धान की ङ्क्षचता सताने लगी है। इसलिए भारत की कृृषि पद्धति को मानसून का जुआ कहा जाता है। किसानों का मानसून पर निर्भर रहना उसकी नियति बन गई है और सरकार भी इस समस्या के समाधान के लिए कोई ईंमानदारीपूर्वक पहल नहीं कर रही है। भारतीय कृृषि पद्धति के लिए दुर्भाग्य है कि जुलाई के अंतिम सप्ताह तक भारत में मॉनसून अलग-अलग राज्यों में इस तरह से आया है कि कहीं बाढ़ आ रही है तो कहीं सूखा पड़ा है। सरकार भी मान रही है कि इस बार मॉनसून सही ढंग से नहीं आया है। पर्यावरणविद् इसे जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देख रहे हैं।
वे चिंता जता रहे हैं कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें इस बारे में सचेत नहीं हैं जिसके कारण आने वाले दिनों में किसानों की मुश्किलें बढऩे वाली हैं और यदि पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए तो गरीबी भी बढ़ सकती है जहां गुजरात में बाढ़ की स्थिति है, वहीं बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बारिश औसत से खासी कम रही है। आंध्र प्रदेश में मॉनसून कमजोर पड़ रहा लेकिन महाराष्ट्र और कर्नाटक में बारिश अच्छी हुई। बिहार में तो पिछले साल कोसी में बाढ़ आई थी और लाखों प्रभावित हुए थे लेकिन इस साल ये राज्य सूखे की चपेट में है। जानकार बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन एक हकीकत बन गया है और इसी के कारण मॉनसून पहले की तरह नहीं आ रहा है। पिछले पांच साल में भारत में हुए शोध के मुताबिक पूर्वी भारत में कम बारिश व पश्चिमी भाग में अधिक बारिश के साथ अधिक बाढ़ का अनुमान सामने आया था। इसकी सच्चाई सामने भी आ रही है। तटवर्ती इलाकों-बंगाल और उड़ीसा में अकसर चक्रवात भी आ रहे हैं। ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं। जरूरत कृृषि में बदलाव लाने की है।
सूचना तकनीक से किसान फायदा उठा सकें, इसकी जरूरत है, नहीं तो किसान तबाह हो जाएगा और गरीबी बढ़ेगी। राजनीतिक नेताओं को विज्ञान से संबंधित इस बदलाव को समझने की जरूरत है। इन दिनों गुजरात में भारी बारिश देखी गई और लोगों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, दिल्ली और मुंबई को किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा, इसे सबने स्पष्ट रूप से देखा। इस मॉनसून में आंध्र प्रदेश में सामान्य से कम बारिश हुई। कर्नाटक में अच्छी बारिश हुई है जिसका तमिलनाडु को भी फायदा हुआ है। कावेरी नदी में खासा पानी आया है जिसके कारण कर्नाटक ने पड़ोसी राज्य के लिए भी कावेरी नदी में काफी पानी छोड़ा है। कर्नाटक सरकार के अनुसार इसके कारण कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच पानी के मसले पर फिलहाल तो तनाव खत्म ही हो गया है। उत्तर प्रदेश में मॉनसून के पहले चरण में सरकार ने कई जिलों कोसूखा ग्रसित होने की सूची में रखा है। उत्तर प्रदेश का लगभग कोई भी ऐसा जिला नहीं है जहां संतोषजनक बारिश हुई है। बिहार में किसान काफी तकलीफ में हैं।
धान की बात करें तो 50 फीसदी से ज्यादा फ सल नष्ट हो गई है। सरकार ने किसानों को राहत देने की बात की है। बिहार में जुलाई के अंतिम सप्ताह तक बारिश इतनी कम हुई है कि लगभग पूरा राज्य सूखे की चपेट में है। इस मौसम में राज्य में लगभग 35 हजार हेक्टेयर में धान की फसल बोई जाती थी लेकिन इस बार यह घटकर केवल छह हजार-सात हेक्टेयर में ही बोई गई है। कुल मिलाकर बाढ़ और सूखे के कारण किसान परेशान हाल हैं और उनकी समस्या को गंभीरता से सोचने की जरूरत है। दूसरी ओर कृृषि से जुड़े लोगों को चाहिए कि इस समस्या के समाधान के लिए कारगर कदम उठाए, जो अति आवश्यक है।