बलूचिस्तान के बाद अब पाकिस्तान के सिंध प्रांत में भी आजादी की मांग जोर पकड़ने लगी है। सिंध को अलग देश बनाने की मांग करने वाली एक राजनीतिक समूह जय सिंध फ्रीडम मूवमेंड (जेएसएफएम) ने शुक्रवार को पाकिस्तान में एक राजमार्ग पर शांतिपूर्ण धरना दिया। इस दौरान लापता और जेल में बंद सिंधी राष्ट्रवादियों की रिहाई की मांग की गई। सिंधु देश की वकालत करने वाले समूह ने सिंध और बलूचिस्तान में जबरन गायब किए गए लोगों, अवैध हिरासत और मानवाधिकारों के हनन पर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने की मांग की।
जेएसएफएम के अध्यक्ष सोहेल अब्रो, जुबैर और अमर आजादी समेत नेताओं ने जाहिद चन्ना, सज्जाद चन्ना, अदनान बलूच और शाहिद सूमरो को तत्काल रिहा करने को कहा। यह भी मांग की गई कि उनके खिलाफ झूठे आरोप वापस लिए जाएं और सभी जबरन गिरफ्तार किए गए लोगों को रिहा किया जाए। सामूहिक बयान में कहा गया, यह धरना हमारे राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं की गैरकानूनी गिरफ्तारियों, जेलों में हो रहे दुर्व्यवहार और जबरन गायब किए जाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन है। हाल के प्रदर्शन में ङ्क्षसधु राष्ट्र के लिए तैयार किए गए राष्ट्रगान को भी गाया गया व सिंध देश के अलग झंडे को भी फहराया गया। 'सिंधु देशÓ जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सिंधियों के लिए अलग देश। सिंधु देश एक विचार है जो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बसे और दुनिया भर में फैले सिंधियों का एक सपना है। ये सिंधी दुनिया दूसरे एथनिक समुदायों की तरह अपने लिए एक अलग होमलैंड की मांग करते आ रहे हैं। जैसे कुर्द अपने लिए अलग देश की मांग करते हैं, यहूदी समुदाय के लोगों ने इजरायल नाम का अपना देश बनाया है, उसी तरह सिंधी पाकिस्तान के अंदर एक निश्चित भूभाग में अपने लिए एक स्वतंत्र और सार्वभौम मातृभूमि चाहते हैं। यदि पाकिस्तान के इतिहास को देखें तो भारत से अलग होकर 1947 में बने पाकिस्तान के लिए समस्याएं कभी खत्म होने का नाम नहीं लेती हैं। दुनियाभर के कर्ज में डूबे व आतंकवाद के कारण भारत से ऑपरेशन सिंदूर से मर खा रहे पाकिस्तान में अगर आपको आने वाले कुछ वर्षों में गृहयुद्ध की स्थिति बनती दिखाई दे, तो चौंकाने वाली बात नहीं होगी। उर्दू को पाकिस्तान की सरकारी भाषा बनाने की घोषणा के साथ ही पाकिस्तान में अलगाववाद के बीज पनपने लगे थे। लोगों पर जबरदस्ती उर्दू भाषा थोपी गई। बांग्लाभाषी बहुल पूर्वी पाकिस्तान इसी फैसले के चलते अब अलग देश बनकर बांग्लादेश के रूप में आपके सामने है। वहीं, पाकिस्तान में अगस्त, 1947 के बाद से अब तक बनी सभी सरकारों ने मानवाधिकारों को एक अलग खूंटी पर टांग दिया। बात पाकिस्तान अधिकृृत कश्मीर की हो या बलूचिस्तान या फिर सिंधु प्रांत की। पाकिस्तानी सरकारों ने इन सभी जगहों से उठने वाली आवाजों को वर्षों से दमन किया है। पाकिस्तानी फौज द्वारा बलूचिस्तान में किए जा रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वाली एक्टिविस्ट करीमा बलोच की कनाडा में हुई हत्या इसका एक ताजा उदाहरण है।
फिलहाल पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सबसे ज्यादा हिंदू आबादी रहती है। पाकिस्तान की कुल हिंदू आबादी का करीब 95 फीसदी सिंध प्रांत में हैं। पाकिस्तान के उत्पीड़न से त्रस्त इन लोगों ने अब वैश्विक नेताओं से गुहार लगाई है। वहीं, प्रदर्शनकारियों के हाथ में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर होने के पीछे एक बड़ी वजह है। कश्मीर की स्थिति को लेकर हुई एक सर्वदलीय बैठक में मोदी ने कहा था कि समय आ गया है, अब पाकिस्तान को विश्व के सामने बलूचिस्तान और पाकिस्तान अधिकृृत कश्मीर में लोगों पर हो रहे अत्याचारों का जवाब देना होगा। मोदी के इस बयान के चलते बलोच आंदोलन को अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में काफी तवज्जो मिली थी। इसके बाद 2016 में भारत के 70वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर से बलूचिस्तान, गिलगित और पाकिस्तान अधिकृृत कश्मीर के लोगों का आभार व्यक्त किया था। दरअसल, पीएम मोदी के बयान के बाद पाकिस्तान में जुल्मो-सितम झेल रहे इन हिस्सों के लोगों ने उनकी आवाज उठाने के लिए मोदी को सोशल मीडिया पर धन्यवाद दिया था।
हाल ही में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के जमसोरो जिले में जीएम सैयद के गृहनगर सान कस्बे में हुई रैली में लोगों द्वारा आजादी के लिए नारे लगाए गए। प्रदर्शनकारियों ने इस दौरान सीधे तौर पर कहा- सिंध, सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक धर्म का घर है। ब्रिटिश साम्राज्य ने इस पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया था और 1947 में पाकिस्तान के इस्लामी हाथों में दे दिया था। अलग सिंधु देश की मांग को विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफार्मों पर उठाया जा रहा है। इन लोगों का मानना है कि पाकिस्तान ने सिंध प्रांत पर जबरन कब्जा कर रखा है। साथ ही पाकिस्तान संसाधनों का दोहन और मानवाधिकारों के जमकर उल्लंघन करता है। जिये सिंध मुत्ताहिदा महाज के चेयरमैन मुहम्मद बरफात ने कहा कि हमारी संस्कृृति और इतिहास पर हुए दशकों से जारी हमलों के बावजूद हमने अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को बचाकर रखा है। हम आज भी बहुलतावादी, सहिष्णु और सौहार्दपूर्ण समाज हैं, जो मानव सभ्यता को बचाकर रखे हुए हैं।
पाकिस्तान के निर्माण के बाद से ही बलूचिस्तान, गिलगित और पाक अधिकृृत कश्मीर में असंतोष बढ़ने लगा था। पाकिस्तानी हुकूमत पर पंजाबी वर्ग के वर्चस्व से लेकर मानवाधिकारों के उल्लंघन तक पाक के नापाक इरादों की एक लंबी दास्तान है। इन सबके बीच अब चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के चलते भी पाक में भारी असंतोष फैल रहा है। पाकिस्तान के इन हिस्सों की आवाम अब खुलकर अपना विरोध दर्शा रही है। बीते कुछ वर्षों में भारत की वर्तमान मोदी सरकार पर इन लोगों का भरोसा बढ़ा है। ऐसे में अलगाववादी रैली में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर नजर आने से पाकिस्तान की पेशानी पर फिर से बल पड़ सकते हैं। अब देखना यह है कि अलग सिंध देश की मांग से क्या पाकिस्तान के टुकड़े होंगे? होंगे तो कितने होंगे? सिंध देश यदि अलग बन जाता है तो वहां रहने वाले सिंधि हिंदुओं को इसका कितना लाभ मिल सकेगा?
सिंध देश की मांग के आलावा साल 1947 में पाकिस्तान के बनने के साथ ही बलूच मुद्दे ने भी उसकी नाक में दम कर रखा है। आए दिन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी की खबरें आती हैं कि उसने अपने यहां कोई धमाका कर दिया, जिसमें पाकिस्तान सरकार या चीन के लोग मारे गए।