असम के महान सपूत एवं वीर योद्धा लाचित बरफुकन की 400वीं जयंती के मौके पर राज्य में कार्यक्रमों की शुरूआत हो चुकी है। लेकिन इस महान योद्धा के बारे में राष्ट्रीय स्तर पर जितनी अहमियत मिलनी चाहिए अभी तक नहीं मिली है। राज्य सरकार ने इस बार राष्ट्रीय स्तर पर देश की राजधानी दिल्ली में तीन दिवसीय व्यापक कार्यक्रम करने की तैयारी की है ताकि इस वीर योद्धा के कामों को राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिल सके तथा शेष भारत के लोग इनकी बहादुरी के बारे में जान सकें। 23 नवंबर से 25 नवंबर तक नई दिल्ली में असम सरकार द्वारा लाचित बरफुकन की जयंती के अवसर पर विज्ञान भवन में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। 25 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे, जबकि 24 नवंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मुख्य अतिथि के रूप में सभा को संबोधित करेंगे। 400वीं जयंती के मौके पर लाचित बरफुकन के अलावे असम के उन सभी महान सपूतों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए पहल होनी चाहिए, जिन्होंने बाहर के आक्रमणकारियों से पूर्वोत्तर क्षेत्र का बचाव किया तथा स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी कुर्बानी दी। यह संतोष का विषय है कि मुगल साम्राज्य का शासन पूरे देश में रहा, किंतु पूर्वोत्तर क्षेत्र उससे अलग रहा। जब मुगलों की सेना ने असम में प्रवेश के लिए आक्रमण किया उस वक्त महान सेनानायक लाचित बरफुकन के नेतृत्व में आहोम राज्य की सेना ने सराईघाट के मैदान में मुगल सेना को धूल चटा दी। इस दौरान लाचित बरफुकन ने गद्दारी करने के कारण अपने मामा का सर धड़ से अलग कर दिया। इतनी बड़ी उपलब्धि के बावजूद लाचित बरफुकन को भारतीय इतिहास में वो जगह नहीं मिल पाई है जिसके वे हकदार हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र के कुछ अन्य वीर सपूतों को भी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान नहीं मिल पाई। असम के तत्कालीन राज्यपाल ले. जनरल (रिटायर्ड) एसके सिन्हा ने महाराष्ट्र के पुणे स्थित राष्ट्रीय रक्षा एकेडमी (एनडीए) में  लाचित बरफुकन की प्रतिमा स्थापित कराने के लिए पहल की, उसके बाद से ही इनका नाम राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाश में आया। इसके बाद से ही प्रत्येक वर्ष वहां कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। राज्यपाल सिन्हा ने अपनी पुस्तक में सराईघाट के युद्ध के बारे में विस्तृत विवरण देकर इस महान सपूत के योगदान को पूर्वोत्तर से बाहर पहुंचाया। इसके लिए असम की जनता उनका आभारी है। लाचित बरफुकन पूर्वोत्तर क्षेत्र से केवल ऐसे अकेले व्यक्ति नहीं थे, जिन्होंने देश की आन-बान और शान की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इससे पहले स्वर्गदेव रूद्र सिंह ने पूर्वी क्षेत्र की रक्षा के लिए मुगलों के खिलाफ पूर्वोत्तर के राजाओं को इकट्ठा किया था। लाचित बरफुकन से पहले कामरूप और कुचबिहार के कई वीर सपूतों ने भी मुगलों एवं दूसरे आक्रमणकारियों से पूर्वोत्तर क्षेत्र को बचाया। महाराज पृथु, मामोई तामुली बरबरुवा, आहोम राजा चक्रध्वज सिंह सहित अनेक ऐसे महान सपूत हैं जिनको भारतीय इतिहास में जगह मिलनी चाहिए। इसके लिए असम सरकार को पहल करने की जरूरत है। लाचित बरफुकन की 400वीं जयंती को बड़े पैमाने पर असम के बाहर आयोजित कर हिमंत विश्व सरकार ने सराहनी काम किया है। इसके माध्यम से असम के और वीर सपूतों एवं योद्धाओं के राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में मदद मिलेगी। इसके लिए लगातार प्रयास करने की जरूरत होगी।