तूफान को आना है, आकर चले जाना है, बादल है ये कुछ पल का छा कर ढल जाना है नंदा की फिल्म के इस गीत से बिल्कुल अलग रही उनकी जिंदगी की कहानी।
नंदा को फिल्मों में कामकरने का बिल्कुल शौक नहीं था, लेकिन मजबूरी ने उन्हें बना दिया स्टार। नंदा की रीयल कहानी किसी रील की कहानी से कम नहीं है। अपने जमाने की मशहूर फिल्म अभिनेत्री नंदा के लिए कोल्हापुर से मुंबई तक का सफर बड़ा मुश्किलों भरा रहा। नंदा कोल्हापुर के मराठी फिल्मों के जाने माने अभिनेता, निर्देशक विनायक दामोदर कर्नाटकी की बेटी और दिग्गज वी. शांताराम की भांजी थीं। नंदा के पिता को लोग प्यार से मास्टर विनायक के नाम से पुकारते थे। नंदा के पिता को फिल्मों का जितना शौक था उतनी ही नंदा फिल्मों से दूर भागती थीं। नंदा कभी भी फिल्मों में काम नहीं करना चाहती थीं। लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वह फिल्मों में एक्टिंग करके अपना कैरियर बनाएं और एक बेहतरीन अदाकारा बने। परछाईयां रह जाती, रह जाती निशानी है, जिंदगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है, कुछ ऐसी ही कहानी है बॉलीवुड अभिनेत्री नंदा की। एक बार की बात है जब नंदा केवल 7 साल की थीं। वो स्कूल से घर लौटीं तो उनके पिता ने कहा कि नंदा को एक फिल्म में लड़के का रोल निभाना है, जिसके लिए उन्होंने निर्माता-निर्देशक को हामी भर दी है। लेकिन लड़के का रोल करने के लिए उन्हें अपने लंबे बाल कटवाने पड़ेंगे। फिर क्या था, बेचारी नंदा पिता की जिद के आगे टिक नहीं पाईं और उन्होंने अपने पिता का मन रखने के लिए उनकी बात मान ली। उन्होंने हार कर इस रोल के लिए हां कह दिया, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि ये आखिरी मौका है जब वह किसी फिल्म में काम कर रही हैं, क्योंकि उन्हें फिल्मों में काम करना पसंद नहीं है। कहते हैं ना कि भगवान की मर्जी के आगे किसी की भी नहीं चलती और इंसान सोचता कुछ है और होता वही है जो ऊपर वाला नसीब में लिखकर भेजता है। महज 7 साल की उम्र में नंदा ने जब फिल्म में लड़के के रोल के लिए बाल कटवाए तो वह बहुत रोईं। लेकिन शर्त मनवाने के लिए उन्होंने ये रोल किया। तकदीर का लिखा कोई नहीं बदल सकता। ये रोल तो उन्होंने अपने पिता की बात रखने के लिए किया था, लेकिन बेचारी नंदा को क्या पता था कि ये उनके पिता की आखिरी इच्छा है जिसे वो पूरा कर रही हैं। जब नंदा 8 साल कि थीं तभी उनके पिता विनायक दामोदर कर्नाटकी की अचानक मृत्यु हो गई। जिसकी वजह से उनके घर की स्थिति बिगडऩे लगी। घर की बुरी आर्थिक स्थिति देखकर बेचारी नंदा को खुद ही अपनी शर्त तोडऩी पड़ी। घर का खर्च चलाने के लिए नंदा ने फिल्मों की ओर रुख कर लिया।