मणिपुर के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के बाद भड़की हिंसा में अब तक 65 लोगों की मौत हो चुकी है। प्रदर्शनकारियों ने बहुत सी सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया है। पिछले 27 अप्रैल से शुरू हुई हिंसात्मक घटनाएं लगातार जारी हैं। मणिपुर में केंद्रीय रिजर्व पुलिस की 52 कंपनियां तथा सेना एवं असम राइफल्स की 105 कॉलम तैनात है। सुरक्षाबलों द्वाा लगातार फ्लैग मार्च किया जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय स्थिति पर लगातार नजर रखे हुए है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से लगातार संपर्क में हैं। अब मणिपुर का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। धीरे-धीरे मणिपुर की स्थिति में सुधार हो रहा है। केंद्र एवं राज्य सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए पहुंचे सालिसिटर जनरल तुषर मेहता ने बताया कि पिछले 7 एवं 8 मई को कुछ इलाकों में कर्फ्यू में ढील दी गई है।

सेना और अर्द्धसैनिक बल के जवान लगातार गश्त कर रहे हैं। उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि मणिपुर की वर्तमान स्थिति मानवीय संकट है, जिसका जल्द ही समाधान हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वह दस दिन के भीतर स्थिति की रिपोर्ट कोर्ट में पेश करे। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार को यह भी कहा कि वह पूजा स्थलों की सुरक्षा तथा विस्थापितों के पुनर्वास की व्यवस्था करे। मालूम हो कि मणिपुर हाई कोर्ट द्वारा मैतेई समुदाय का एसटी का दर्जा देने के आदेश के बाद ही यह हिंसा भड़की है। 27 अप्रैल को मणिपुर के चुड़ाचांदपुर में बने ओपेन जीम को उपद्रवियों ने जला दिया जिसका उद्घाटन करने के लिए 28 अप्रैल को मणिपुर के मुख्यमंत्री जाने वाले थे। 28 अप्रैल को ही अखिल मणिपुरी ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन ने आदिवासी एकजुटता के लिए मार्च निकाला था। चुड़ाचांदपुर जिले के तोरबंग में पहुंचने के साथ ही  हिंसात्मक घटनाएं हो गईं।

कुकी, नगा सहित 30 से ज्यादा जनजाति संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा मिलने से उनके हित प्रभावित होंगे। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके विरोध में म्यामां से सटे मणिपुर के सीमावर्ती जिलों में ज्यादा हुई। सुरक्षाबलों के अनुसार म्यामां के सीमावर्ती लोगों तथा मणिपुर के लोगों के बीच अच्छा संबंध है। उन लोगों ने मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के खिलाफ वहां के दूसरे जनजातिय समुदाय को उकसाया जिसका परिणाम हिंसा में तब्दील हो गया। इस घटना में राजनीति होना भी स्वाभाविक है। राजनीतिक पार्टियां भी इस मुद्दे पर अपनी सियासत करने से बाज नहीं आ रही है। मणिपुर के हिंसाग्रस्त इलाके में सुरक्षाबल हेलीकॉप्टर और ड्रोन की मदद से निगरानी कर रहे हैं ताकि असामाजिक तत्व इसका फायदा नहीं उठा सके। हिंसा किसी भी समस्या का हल नहीं है।

अखिल ट्राइबल छात्र संघ द्वारा आयोजित 12 घंटे के मणिपुर बंद के दौरान आदिवासी समुदायों एवं मैतेई समुदाय के बीच कई जगह झड़प हो गई, जिसके बाद राज्य में 144 धारा लागू कर दी गई एवं इंटरनेट सेवा बंद करने का निर्णय लिया गया। आज कल इंटरनेट पर अफवाहों के माध्यम से स्थिति को बिगाड़ने की कोशिश की जाती है। मणिपुर के पड़ासी राज्य असम, मेघालय, मिजोरम और नगालैंड की सरकारें अपने-अपने नागरिकों केा मणिपुर से निकालने के लिए सक्रिय हो गई हैं। इन सरकारों की पहल से यह पता चलता है कि स्थिति कितनी खराब हो गई थी। मणिपुर सरकार सर्वदलीय बैठक आयोजित कर स्थिति को सुधारने की कोशिश कर रही है। किसी भी समस्या का समाधान हिंसा से नहीं बल्कि बातचीत से होना चाहिए। सीमावर्ती राज्य होने के कारण मणिपुर के मसले को गंभीरता से लेने की जरूरत है।