कर्नाटक चुनाव खत्म होने के बाद भाजपा का फोकस अब राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ पर हो गया है। पिछले दो माह में भाजपा ने फेरबदल कर राजस्थान में अपनी सोशल इंजीनियङ्क्षरग पटरी पर लाने की कोशिश की है। राज्य में ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रीय भाजपा के कोर वोटर हैं। चुनाव से ठीक पहले भाजपा इसी दिशा में काम कर रही है। एक ओर जहां पार्टी ने सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर ब्रह्मणों को साधने की कोशिश की है, वहीं दूसरी तरफ राजेंद्र राठौर को चुनाव से पहले नेता प्रतिपक्ष बनाकर राजपूतों को भी अपनी ओर साधने का प्रयास किया है। राठौर के अलावा राजस्थान से केंद्रीय मंत्रिमंडल में गजेंद्र ङ्क्षसह शेखावत जैसे बड़े राजपूत चेहरे हैं। वहीं राजस्थान में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला एवं असम के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया को अहम पद देकर भाजपा ने वैश्य समाज को अपनी ओर खींचने का प्रयास किया है।
राजस्थान से घनश्याम तिवारी ब्राह्मण चेहरे के रूप में राज्यसभा के सदस्य हैं। जाति के तौर पर जाट समाज का राजस्थान में काफी प्रभाव है। यही वजह है कि भाजपा ने कई अहम पदों पर जाट नेताओं को बैठाया है। प्रदेश अध्यक्ष के बाद सतीश पुनिया को उप नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ जाट समाज से आते हैं। केंद्रीय मंत्री के रूप में कैलाश चौधरी राजस्थान से जाट समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। मीणा समुदाय की तरफ से किरोड़ी लाल मीणा राज्यसभा सांसद हैं। मालूम हो कि राजस्थान में 12 फीसदी आदिवासियों का वोट है। भाजपा ने कानून मंत्री किरन रिजीजू को हटाकर राजस्थान से ताल्लुक रखने वाले सांसद अर्जुनराम मेघवाल को कानून मंत्रालय की जिम्मेवारी सौंपी है। मेघवाल को प्रमोशन देकर भाजपा ने यह साबित कर दिया है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा किसी एक जाति पर निर्भर नहीं रहेगी।
अभी यह भी स्पष्ट हो गया है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भाजपा का चेहरा नहीं होंगी। मेघवाल को प्रन्नोति देकर भाजपा यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि पार्टी किसी एक चेहरे के साथ आगे बढऩे की जोखिम नहीं ले सकती। राजस्थान में बड़ी संख्या में दलित खासकर मेघवाल समाज के लोग हैं। अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा इनकी मदद से जीत हासिल करती रही है। राजस्थान में दलित करीब 16 प्रतिशत है, जिसमें 60 फीसदी आबादी मेघवालों की है। दलित वोटर्स भाजपा का परंपरागत बैंक माना जाता है। यही कारण है कि भाजपा अर्जुन राम मेघवाल को दलित चेहरा बनाने की दिशा में काम कर रही है। इन्हें केंद्र में बड़ी जिम्मेवारी देकर दलित समाज को संतुष्ट करने का प्रयास किया गया है। पहले यह अनुमान था कि मेघवाल को केंद्रीय राजनीति से हटाकर राजस्थान भेजा जाएगा तथा उन्हें चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया जाएगा।
लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ दिख नहीं रहा है। मेघवाल राजस्थान के बिकानेर से लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी के पास श्रीगंगानगर लोकसभा सीट पर भी भाजपा की दलित सांसद नेहाल चंद मेघवाल छह बार से चुनाव जीत रहे हैं। लेकिन बलात्कार के आरोप के चलते उनको मंत्रिमंडल से हटाकर अर्जुनराम मेघवाल को मंत्री बनाकर जातिय संतुलन बनाया गया था। संगठन को मजबूत करने के क्षेत्र में मेघवाल की काफी अहमियत है। एक तरफ जहां कांग्रेस में अंदरुनी गुटबाजी चरम पर है, वहीं दूसरी तरफ भाजपा अपने को मजबूत करने में लगी हुई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट एक-दूसरे के खिलाफ सार्वजनिक रूप से हमले कर रहे हैं।
सचिन पायलट अपने समर्थकों के साथ गहलोत सरकार की पोल खोलने के लिए सडक़ों पर उतर चुके हैं। मुख्यमंत्री भी पायलट को घेरने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे हैं। कांग्रेस आलाकमान दोनों नेताओं को रोकने में अब तक विफल रहा है। कांग्रेस को डर है कि अगर सचिन पायलट पर कार्रवाई की गई तो पार्टी चुनाव से पहले टूट सकती है। भाजपा कांग्रेस की इसी कमजोरी का फायदा उठाना चाहती है। यही कारण है कि पार्टी तमाम बड़े नेताओं के बीच संतुलन साधने की कोशिश में है। आने वाले दिनों में कुछ और नेताओं की नियुक्ति हो सकती है। लेकिन अभी तक भाजपा हाईकमान वसुंधरा राजे को लेकर कोई निर्णय नहीं कर पाया है। वसुंधरा फेक्टर विधानसभा चुनाव एवं लोकसभा चुनाव में अहम फेक्टर रहेगा। ऐसे में भाजपा को उनके बारे में जल्द निर्णय लेना होगा।