महाराष्ट्र में आया सियासी तूफान ने देश की राजनीति को झकझोर कर रख दिया है। इसका असर विपक्षी एकता की मुहिम पर निश्चित रूप से पड़ेगा। सियासी खतरे को भांपते हुए कुछ राजनीतिक पाॢटयां अपने कुनबे को बचाने में जुट गई हंै, जबकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। चाचा-भतीजे की सियासी लड़ाई का परिणाम पार्टी के विभाजन के रूप में सामने आया है। भतीजे अजित पवार ने अचानक चाचा शरद पवार को सियासी झटका देते हुए महाराष्ट्र की एकनाथ ङ्क्षशदे सरकार को समर्थन देने तथा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल होने की घोषणा की है। अजित पवार ने आनन-फानन में पार्टी के विधायकों की बैठक बुलाकर ङ्क्षशदे सरकार को समर्थन देने का निर्णय लिया तथा राजभवन पहुंच गए। बदलते घटनाक्रम के तहत रविवार को मुख्यमंत्री ङ्क्षशदे तथा उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की उपस्थिति में अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री की शपथ ली।

उनके पार्टी के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल, दिलीप वाल्से पाटिल, हसन मुशरिफ, धनंजय मुंडे, अदिति तटकरे, धर्मराव अत्राम, अनिल पाटिल एवं संजय बनसोडे ने भी मंत्री पद की शपथ ली है। अब महाराष्ट्र में दो उपमुख्यमंत्री हो गए हैं तथा ट्रिपल इंजन की सरकार हो गई है। पवार के साथ पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल एवं छगन भुजबल जैसे दमदार नेताओं का साथ होना यह साबित करता है कि अजित पवार पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरे हैं। उनका दावा है कि पार्टी के कुल 53 विधायकों में से 40 विधायकों का समर्थन उनको प्राप्त है। विधायकों की सदस्यता बचाने के लिए अजित पवार के पास 36 विधायकों का समर्थन होना जरूरी है। दल-बदल विरोधी कानून के अनुसार अगर पार्टी के दो-तिहाई सदस्य एक साथ पार्टी छोड़ते हैं तो विधायकों की सदस्यता नहीं जाएगी। पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार ने कहा है कि एनसीपी के बारे में अंतिम फैसला जनता के हाथ में है। हालांकि आज पवार के नेतृत्व में हुई बैठक के बाद पार्टी ने प्रफुल्ल पटेल सहित तीन नेताओं को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। इसके अलावा अनुशासन समिति ने ङ्क्षशदे मंत्रिमंडल में शामिल एनसीपी के कुल नौ विधायकों को नोटिस जारी किया है।

एक वर्ष पहले इसी तरह एकनाथ ङ्क्षशदे के नेतृत्व में शिवसेना के विधायकों ने पार्टी से बगावत कर भाजपा से हाथ मिला लिया था। जिसके बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में गठित महा विकास अघाड़ी पार्टी की सरकार गिर गई थी। ङ्क्षशदे ने 30 जून 2022 को मुख्यमंत्री पद और भाजपा नेता देवेन्द्र फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उसके बाद से ही दोनों पार्टियों की सरकार महाराष्ट्र में चल रही है। उस वक्त ङ्क्षशदे का तर्क था कि अगर शिवसेना सत्ता के लिए कांग्रेस जैसी पार्टी के साथ हाथ मिला सकती है तो हमलोग भाजपा के साथ क्यों नहीं। शिवसेना के कुछ विधायकों की अयोग्यता के विषय में मामला कोर्ट में भी लंबित है। अब देखना है कि राजनीति का चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार की अगली चाल क्या होगी?

हालांकि यह घटना अचानक हुई  है, ङ्क्षकतु इसकी पृष्ठभूमि पहले ही लिखी जा चुकी थी। अपनी लोकप्रियता भांपने के लिए जब शरद पवार ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था उस वक्त अजित को लगा था कि उनके लिए अध्यक्ष बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। कार्यकर्ताओं और नेताओं के दबाव के बाद पवार ने अपना इस्तीफा वापस लिया तो अजित पवार के अरमानों को धक्का लगा। उस वक्त अजित पवार और नाराज हो गए जब पार्टी सुप्रीमो शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले तथा अपने विश्वास पात्र प्रफुल्ल पटेल को एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। उसके बाद से ही अजित पवार और भाजपा के बीच मेल-मिलाप की पहल शुरू हो गई थी। मुंबई पुलिस की अपराध शाखा द्वारा अजित पवार के खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के मामले को बंद करना तथा ईडी द्वारा भ्रष्टाचार के दूसरे मामले में कोर्ट में दाखिल चार्जशीट से छोटे पवार का नाम हटाना यह साबित करता है कि दोनों पाॢटयों के बीच खिचड़ी पक रही है। अब देखना है कि इसका असर देश की राजनीति पर क्या पड़ता है?