कोरोना के बाद लोगों की आॢथक स्थिति पहले से ही बिगड़ चुकी है। खासकर मध्यम एवं निम्न वर्ग का जीना दुभर हो गया है। उसके बाद सब्जियों एवं अन्य खाद्य सामग्रियों की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि ने आम जनता का हाल बेहाल कर दिया है। कम आय के लोगों की थाली तक सब्जी पहुंचना मुश्किल होता जा रहा है। बाढ़ और बारिश के कारण खेतों से बाजारों तक सब्जियां नहीं पहुंच रही हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं। टमाटर पहले से ही ज्यादा लाल हो चुका है। अब हरी मिर्च, अदरक, कद्दू, बैगन, फूल गोभी लहसुन की कीमतें भी बेकाबू हो रही हैं। टमाटर की कीमत देश के विभिन्न बाजारों में 120 से 160 रुपए किलो तक पहुंच चुकी है। जून में सीपीआई खुदरा महंगाई दर तीन महीने के उच्च स्तर पर पहुंच चुका है। सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार मई में सीपीआई खुदरा मंहगाई दर 4.31 प्रतिशत थी, जो जून में बढ़कर 4.81 प्रतिशत हो गई है। जून में शहरी महंगाई 4.33 प्रतिशत से बढ़कर 4.96 प्रतिशत, जबकि ग्रामीण महंगाई 4.23 प्रतिशत से बढ़कर 4.72 प्रतिशत हो गई है।

खाद्य महंगाई इस महीने 2.96 प्रतिशत से बढ़कर 4.49 प्रतिशत हो गई है। खुदरा महंगाई बढऩे का असर सब्जियों की कीमतों में देखा जा रहा है। अदरख 250 से 300 रुपए प्रतिकिलो हो गया है। हरी मिर्च का तीखापन कीमतों में भी देखा जा रहा है। अब प्रश्न यह उठता है कि सरकार महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम क्यों नहीं उठा रही है। किसानों का कहना है कि बाढ़ एवं बारिश के कारण परिवहन व्यवस्था चरमरा गई है। इसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों तक सब्जियां नहीं पहुंच पा रही है। सब्जियों से लदे वाहन जगह-जगह फंसे हुए हैं। अब सरकार का दायित्व है कि वह बुनियादी ढांचे को बहाल करे ताकि परिवहन व्यवस्था फिर से शुरू हो। दूसरी बात यह है कि कृृत्रिम मूल्यवृद्धि का बहाना बनाकर कालाबाजारी एवं जमाखोर आम जनता को लूट रहे हैं। बिचौलिए एवं खुदरा बिक्रेता एक-दूसरे पर दोषारोपण कर अपनी झोली भर रहे हैं।

सरकार का यह दायित्व है कि बिचौलिए लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि समय पर उचित दर पर सब्जियां बाजार में पहुंच सके। सब्जी सहित कई क्षेत्रों में ङ्क्षसडीकेट चल रहा है। ङ्क्षसडीकेट के लोग खेत से लेकर बाजार तक कब्जा जमाए हुए हैं। ये लोग मनमाने तरीके से सब्जियों एवं फलों की कीमतें तय करते हैं। खुदरा बिक्रेता भी इसका लाभ उठाकर अपने हिसाब से बिक्री करते हैं। इन सबका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। केवल सब्जियों की कीमतों में ही वृद्धि नहीं हो रही है, बल्कि दाल एवं दूसरे खाद्य सामग्रियों की कीमतों में हाल के महीनों में काफी वृद्धि हुई है। लोगों की आमदनी घट रही है, जबकि महंगाई में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। सरकार को इस मामले में कोई ठोस नीति बनानी चाहिए ताकि बिचौलिए एवं जमाखोर परिस्थिति का फायदा उठाकर जनता को न लूट सकें। अगर यही स्थिति जारी रही तो फिर स्थिति नियंत्रण से बाहर हो सकती है। असम में भी फलों एवं सब्जियों की आसमान छूती कीमतों से जनता बेहाल है। राज्य प्रशासन केवल हाथ पर हाथ रख कर तमाशा देख रहा है। जनता की आवाज सुनने वाला कोई नहीं है। राज्य सरकार को भी इस मामले में आगे आना चाहिए। केवल एक-दूसरे पर दोषारोपण करने से काम नहीं चलेगा।